शरद पवार की अगुवाई वाले एनसीपी (एसपी) के विधायक और महासचिव रोहित पवार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा पूर्व बीजेपी प्रवक्ता आरती साठे को उच्च न्यायालय की न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश पर कड़ा ऐतराज़ जताया। उन्होंने दावा किया कि इस तरह की नियुक्ति से न्यायपालिका की निष्पक्षता पर गहरा असर पड़ेगा।
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पवार ने सवाल उठाया, “जब कोई नागरिक सरकार के खिलाफ अदालत में जाता है और उस मामले की सुनवाई करने वाली जज कभी सत्तारूढ़ पार्टी की सदस्य रही हों, तो क्या वह व्यक्ति निष्पक्ष न्याय की उम्मीद कर सकता है?”
पवार ने कॉलेजियम से आग्रह किया कि आरती साठे का नाम सूची से हटाया जाए। उन्होंने कहा, “एक ऐसी व्यक्ति को जज बनाना, जो खुले तौर पर एक राजनीतिक दल का प्रतिनिधित्व करती रही हो, लोकतंत्र पर सबसे बड़ा आघात है। इससे देश की न्यायपालिका की निष्पक्षता बुरी तरह प्रभावित होगी।”
उन्होंने यह भी कहा कि भले ही साठे ने 2024 में बीजेपी से इस्तीफा दिया हो, लेकिन न्यायिक नियुक्ति की प्रक्रिया काफी पहले शुरू हो जाती है। “अगर उनका नाम 2025 में प्रस्तावित किया गया है, तो उनका इंटरव्यू 2023 के आसपास हुआ होगा। क्या तब तक वह पार्टी पद पर थीं?” उन्होंने सवाल उठाया।
रोहित पवार ने यह भी पूछा, “क्या किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले जज से यह उम्मीद की जा सकती है कि वह किसानों की आत्महत्याओं, ज़मीन घोटालों या पर्यावरण से जुड़ी सरकारी लापरवाही जैसे मामलों में निष्पक्ष फैसला देंगे?”
इस मामले में बीजेपी प्रवक्ता केशव उपाध्ये ने मंगलवार को प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि आरती साठे ने दो साल पहले ही बीजेपी से सारे संबंध तोड़ दिए थे। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस के नेताओं को भी अतीत में जज बनाया गया था और बाद में वे फिर से सांसद बने। “राजनीतिक पृष्ठभूमि मात्र किसी को न्यायाधीश नियुक्त करने से अयोग्य ठहराने का आधार नहीं हो सकती,” उन्होंने कहा।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से रोहित पवार की आपत्तियों पर कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।