हर साल 15 अगस्त को भारत के प्रधानमंत्री का दिल्ली के ऐतिहासिक लाल क़िले की प्राचीर से तिरंगा फहराना एक गौरवशाली परंपरा है। यह पल न केवल देश की स्वतंत्रता का प्रतीक है, बल्कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व और राष्ट्र के प्रति उनके संबोधन का भी एक शक्तिशाली मंच है। हालाँकि, भारत के अब तक के इतिहास में दो प्रधानमंत्री ऐसे भी हुए हैं, जिन्हें देश का नेतृत्व करने के बावजूद यह सम्मान प्राप्त नहीं हुआ।
ये दो नाम हैं – गुलज़ारीलाल नंदा और चंद्रशेखर।
गुलज़ारीलाल नंदा: दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री
गुलज़ारीलाल नंदा ने दो बार भारत के कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला, लेकिन दोनों ही बार उनका कार्यकाल बहुत छोटा रहा और 15 अगस्त के अवसर तक नहीं पहुँचा।
- पहली बार (1964): भारत के प्रथम प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद, नंदा ने 27 मई, 1964 से 9 जून, 1964 तक 13 दिनों के लिए पद संभाला। इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री को नए प्रधानमंत्री के रूप में चुन लिया गया।
- दूसरी बार (1966): लाल बहादुर शास्त्री के आकस्मिक निधन के बाद, उन्होंने एक बार फिर 11 जनवरी, 1966 से 24 जनवरी, 1966 तक 13 दिनों के लिए कार्यभार संभाला, जिसके बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं।
दोनों ही मौकों पर उनका कार्यकाल अंतरिम था और स्वतंत्रता दिवस से महीनों पहले ही समाप्त हो गया, जिस कारण उन्हें लाल क़िले पर ध्वजारोहण का अवसर नहीं मिला।
चंद्रशेखर: एक संक्षिप्त कार्यकाल
चंद्रशेखर 10 नवंबर, 1990 से 21 जून, 1991 तक लगभग सात महीनों के लिए भारत के आठवें प्रधानमंत्री रहे। उनका कार्यकाल राजनीतिक अस्थिरता के दौर में आया था। उन्होंने कांग्रेस के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई थी, लेकिन यह समर्थन वापस ले लिए जाने के बाद उनकी सरकार गिर गई।
चूंकि उनका कार्यकाल नवंबर में शुरू हुआ और अगले साल जून में समाप्त हो गया, इसलिए उनके प्रधानमंत्रित्व काल में 15 अगस्त का दिन नहीं आया। इस वजह से, वे भी उन प्रधानमंत्रियों की सूची में शामिल हो गए जिन्हें लाल क़िले पर तिरंगा फहराने का मौका नहीं मिला।
इस प्रकार, राजनीतिक परिस्थितियाँ और कार्यकाल की संक्षिप्त अवधि ही वे मुख्य कारण थे जिनकी वजह से गुलज़ारीलाल नंदा और चंद्रशेखर भारतीय प्रधानमंत्री के इस प्रतिष्ठित कर्तव्य को पूरा नहीं कर सके।